#सामान्य हिन्दी साहित्य और व्याकरण , प्रतियोगिता परीक्षाओं हेतु - भाग प्रथम #

सामान्य हिन्दी - पार्ट १
भाषा विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम है। भाषा के माध्यम से मनुष्य समाज के अन्य लोगों से भावों एवं विचारों का आदान-प्रदान करता है। लोगों के बीच होने वाले विचारों का आदान-प्रदान 'संप्रेषण ' कहलाता है। अपनी बात दूसरों  तक संप्रेषित करने के लिए ताली बजाना,इशारों, अस्पष्ट ध्वनियों का  सहारा लिया जाता है।
मनुष्य संप्रेषण के लिए सबसे अधिक जिस माध्यम का सहारा लेता है, वह भाषा है।
ध्वनियों के सार्थक मेल से शब्द बनता है। जैसे - कलम शब्द है लेकिन 'मलक' कोई शब्द नहीं है क्योंकि इसका कोई अर्थ नहीं है।
शब्दों के सार्थक मेल को वाक्य कहते हैं । जैसे - राम  आम खाता है।   खाता राम आम कोई वाक्य नहीं है।
भाषा उस साधन को कहते हैं जिसके द्वारा मनुष्य अपने भावों और विचारों को लिखकर या बोलकर प्रकट करता है। भाषा केवल मनुष्य के मुख से उच्चरित रुप को ही कहते हैं। यह एक सामाजिक व्यापार है।
भाषा के दो रुप होते हैं।
१.उच्चरित या मौखिक भाषा
२.लिखित भाषा
१.उच्चरित भाषा, बोल-चाल का रुप है। यह जन्मजात होता है। इसकी आधारभूत इकाई 'ध्वनि' है।
इसका प्रयोग तभी किया जाता है जब श्रोता ,वक्ता के सामने हो। यह अस्थायी   है।
२.लिखित भाषा - भावों -विचारों को स्थायित्व प्रदान करने का विचार या जो सामने नहीं हैं उन तक इसको पहुंचाने के लिए लिखित भाषा चिह्न का प्रयोग किया गया होगा।
प्रत्येक उच्चरित ध्वनि के लिए तरह - तरह की आकृति वाले लिखित चिह्नों की रचना की गई जिसे 'लिपि- चिह्न  कहा जाता है।
उच्चरित भाषा की सबसे छोटी इकाई 'ध्वनि' है  और लिखित भाषा की सबसे छोटी आधार भूत इकाई वर्ण हैं।
 लिखित भाषा स्थायी रुप है भाषा का जिसके द्वारा आने वाली पीढ़ी के लिए अपने भावों - विचारों को सुरक्षित रखा जा सकता है।
भाषा को स्थायी रुप देने के लिए लिखित रूप का विकास हुआ। प्रत्येक ध्वनि के लिए लिखित चिह्न या वर्ण बनाए गये जो 'लिपि' कहलाता है।
हिन्दी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। देवनागरी का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। विभिन्न भाषाओं को लिखने कै लिए अनेक लिपियांँ प्रचलित है।
देवनागरी बाईं से दाईं ओर लिखी जाती है।
 उर्दू की लिपि फारसी  है जो दाईं से बाईं ओर को लिखी जाती है।
भाषा                                              लिपि
१ हिन्दी।                                        १.देवनागरी
२. संस्कृत।                                      २.देवनागरी
३.मैथिली                                          ३.देवनागरी
४. मराठी                                           ४.देवनागरी
५.नेपाली                                             ५. देवनागरी


६.अंग्रेजी                                              ६.रोमन
७.पंजाबी                                                गुरुमुखी
भाषा परिवार _
भाषाओं का समूह , जिसका जन्म किसी एक मूल भाषा से हुआ है, भाषा परिवार कहलाता हैं।
विश्वभर की लगभग ६५०० भाषाओं को १२ मुख्य भाषा परिवारों में विभाजित किया गया है।
१.भारोपीय (भारत- योरोपीय)
२.द्रविड़
३.चीनी
४.,सेमेटिक
५.हेमेटिक
६.आग्नेय
७.यूराल -अल्टाइक
८.बाँटू
९.अमेरिकी
१०.काकेशस
११.सूडानी
१२.वुशमैन
हिन्दी,गुजराती,कश्मीरी,मैथिली,बांग्ला,उड़िया,असमिया,
उर्दू,मराठी,पंजाबी आर्य परिवार की भाषा मानी जाती है।
इन सभी का मूल स्रोत संस्कृत है। अंग्रेजी,जर्मन, फ्रांसीसी,रुसी, फारसी,ग्रीक, संस्कृत सभी भारत-यूरोपीय भाषा परिवार माना जाता है।
भारत में भारत- यूऱोपीय परिवार की भारतीय आर्य- भाषाएं और द्रविऊ कुल की भाषा जिसमें मुख्य भाषा तमिल, तेलगु, मलयालम,कन्नड़ बोली जाती है। द्र्विड़ कुल की भाषा में भी संस्कृत के शब्द प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं
भारतीय - यूरोपीय  भाषा परिवार विश्व का एक अत्यंत विशाल भाषा परिवार है। इसे भारतीय आर्य भाषा शाखा के नाम से भी जाना जाता है। वैदिक संस्कृत सबसे प्राचीनतम रुप है।इसी से हिन्दी भाषा और अन्य भारतीय भाषाओं का विकास हुआ। आधुनिक युग की भाषाओं का
विकास हुआ। आधुनिक युग की भारतीय भाषाओं तक आने में इसे निम्न चार चरणों से होकर गुजरना पड़ा

१.वैदिक संस्कृत (१५००ई .पू.से८००ई .पू .तक) इसमें चार वेदों की रचना हुई।
२.लौकिक संस्कृत (८०० ई.पू. से ५०० ई.पू. तक) इस अवधि में रामायण, महाभारत आदि महाकाव्य लिखे गए।
३.पालि और प्राकृत ( ५०० ई.पू. से ५०० ई.तक )इसमें बौद्ध साहित्य की रचना हुई। यह लौकिक , संस्कृत का परिवर्तित रूप है।
४.अपभ्रंश (५००  ई.से १००० ई.तक) प्राकृत का परिवर्तित रूप  शैरसैनी,मगधी, महाराष्ट्री, आदि रुऐ प्रचलित है।
द्रविड़ परिवार की तमिल, तेलुगु , मलयालम तथा कन्नड़ को छोड़कर भारत के ,सभी भाषाओं का विकास अपभ्रंश से हुआ है।
हिन्दी का विकास अपभ्रंश से हुआ है जो ५०० ई. से १००० ई. के बीच का माना जाता है।
आर्य - परिवार की आधुनिक भारतीय भाषाओं में हिन्दी, मैथिली, उर्दू, कश्मीरी,सिंधी, गुजराती, मराठी, बांग्ला, उड़िया और असमिया प्रमुख हैं।
संस्कृत से विकसित होने के कारण इन भाषाओं में संस्कृत के शब्द प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। व्याकरण के भी नियम लगभग समान होते हैं।
मुगलकाल में दो प्रमुख भाषाएं अरबी और फारसी ने भाषा पर प्रभाव डाला। उर्दू  ज्यादा प्रभाव डाला। इसी तरह अंग्रेजों के द्वारा २०० वर्ष तक शासन करने की वजह से अंग्रेजी भाषा के बहुत से शब्द हिन्दी में भी प्रयोग किए जाते हैं।
आज जिस रुप में हिन्दी बोली और समझी जाती है वह खड़ी बोली का साहित्यिक रुप  है। इसका विकास मुख्यत १९वीं सदी में हुआ है। खड़ी बोली का प्राचीन १०वीं सदी में मिलता है ।१४वीं  सदी में अमीर खुसरो ने खड़ी बोली में पहली रचना की।
दक्कनी  हिन्दी - उत्तर भारत की खड़ी बोली को मुसलमानों के द्वारा दक्षिण भारत में ले जाया गया। दक्कनी उर्दू कहा जाता है।
मध्यकाल में ब्रजभाषा और अवधी काव्य की भाषाएं थी।, सूरदास जी ने ब्रजभाषा को, विद्यापति जी ने मैथिली को , तुलसी दास जी ने अवधि को को शिखर तक पहुंचाया। राजदरबार में फारसी राजकाज की भाषा थी। खड़ी बोली मध्यकाल तक मुख्यत बोल - चाल की भाषा थी, उत्तर भारत में।
१९वीं और २०वीं सदी में ग्यान - विज्ञान का प्रसार हुआ और इसे जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए खड़ी बोली सहज रूप से सर्वग्राह्य के रुप में सामने आया। पत्र, पत्रिकाओं का उदय ,जन सामान्य तक संदेश पहुंचाने का आग्रह, शिक्षा का प्रसार, राजनीतिक चेतना का उदय आदि 
कारणों से खड़ी बोली उत्तर भारत ही नहीं बल्कि समस्त देश की जनसंपर्क की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।
इसी युग में  हिन्दी गद्य के रचयिता जैसे - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचन्द्र शुक्ल, जय शंकर प्रसाद,, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', मैथिलीशरण गुप्त आदि अनेक विद्वानों का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा।
राजनीति जगत के नेताओं ने भी जन सामान्य को संबोधित करने के लिए इसी हिन्दी का प्रयोग किया।
भारतीय ,
१. भारतीय संविधान ने हिन्दी को राजभाषा के रूप में १४सितम्बर १९४९ को स्वीकार किया।
२.अनुच्छेद ३४३ के अनुसार राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी
३.हिन्दी अन्तर्राष्ट्रीय स्वरुप भी स्थापित कर चुकी है। 
४.प्रयोजनमूलक हिन्दी, कार्यालयों, बैंकों, कंप्यूटर, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, प्रबंधन संस्थानों, जनसंचार में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी है।
५.बोली - छोटे क्षेत्र में स्थानीय व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली अल्पविकसित रुप बोली कहलाती है।
६.उपभाषा - विस्तृत क्षेत्र अथवा प्रदेश में बोल-चाल की भाषा होती है, इसमें साहित्यिक रचना भी की जाती है।
इसमें एक से अधिक बोलियां हो सकती है।
७.भाषा - एक विस्तृत क्षेत्र में बोलने, लिखने, साहित्य रचना,संचार माध्यमों में प्रयुक्त होता है।
८.हिन्दी भाषा और साहित्य को समृद्ध करने में  अवधी, छत्तीसगढ़ी, मैथिली, भोजपुरी, हरियाणवी, खड़ी बोली, ब्रजभाषा, बुन्देली, राजस्थानी, गढ़वाली,कुमाँउनी,दकि्खनी हिन्दी से हिन्दी भाषा और समृद्धिशाली हुआ। इन बोलियों,उपभाषाओं में निम्नलिखित रचनाओं का खास योगदान है। अवधि में प्रथम काव्य परंपरा विकसित  हुई। हिन्दी के प्रसिद्ध कवि,लेखक, लेखिका एवं उनकी प्रसिद्ध कृति , रचनाएं
नाम                                       रचना।                       
१.विद्यापति।                        पदावलि, कीर्तिलता,                                          मणिमंजरा, नटिका, गंगावाक्यावली
२.तुलसीदास।                           रामचरितमानस, विनय-पत्रिका, कवितावली, गीतावली
३.मलिक मोहम्मद जायसी               पद्मावत, चंपावत,चित्रावत, बारहमासासब
४.सूरदास।                                      सूरसागर,सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल - दमयंती,ब्याहलो
५. नंददास।                         रसमंजरी,अनेकार्थमंजरी, भागवत-दशम स्कंध, सुदामा चरित,भँवर गीत
६.रसखान।                                प्रेमवाटिका, सुजान रसखान
७.रहीम                                     श्रृंगार- सतसयी,मदनाष्टक, रासपंचाध्ययी
८.केशवदास।                              रसिक प्रिया
९.बिहारी।                                   बिहारी ,सतसै
१०.मतिराम।                                फूल मंजरी, ललित- ललाम,रसराज
११.भूषण।                                    शिवराज भूषण,छत्रशालदशक
१२.पद्माकर।                                 हिम्मतबहादुर, विरुदावली, गंगालहरी, ईश्वर पचीसी, अश्वमेध
१३. अमीर खुसरो।                              तुगलकनामा,आशिका
१४. जयशंकर प्रसाद।                        कामायनी,आँसू,लहर, झरना, चित्राधार ,चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी,नागयज्ञ
१५. मीराबाई।              पायो जी म्हें तो राम रत्न धन पायो
१६. सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'।                परिमल, अर्चना,सांध्य काकली , गीतिका, कुकुरमुत्ता, अनामिका
१७. महादेवी वर्मा।                निहार,नीरजा, रश्मि, दीपशिखा,अग्निरेखा,साप्तपर्णा।
१८. रामधारी सिंह दिनकर।             उर्वशी, रश्मिरथी, हुंकार,नीम के पत्ते
१९. सुभद्रा कुमारी चौहान।             झांसी की रानी, अनोखा दान, ठुकरा दो या प्यार करो, अराधना
२०. माखनलाल चतुर्वेदी।              अमीर इरादे, गरीब इरादे,हिम किरीटिनी,वेणु
२१. मैथिली शरण गुप्त।             भारत -भारती, पंचवटी, जयद्रथवध, यशोधरा
२२. सुमित्रा नंदन पंत।                पल्लव, ग्राम्या, चिदम्बरा, काला और बुढ़ा चाँद,तारापथ
२३. राजा लक्ष्मण सिंह                      प्रजा हितैषी, शकुंतला
२४. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।                   भारत दुर्दशा, सत्य हरिश्चन्द्र
२५. जगन्नाथ दास।                   उद्धव शतक,गंगवतरण,वीराष्टक
२६. श्रीधर पाठक।                वनाश्टक , काश्मीर सुषमा
२७. राम चंद्र शुक्ल।              भरमार गीत सारा, जायसी ग्रंथावली, गोस्वामी तुलसीदास
२८. आचार्य। हजारी प्रसाद द्विवेदी        बाणभट्ट की आत्मकथा, पुनर्नवा
२९. पंद्म सिंह शर्मा।             बिहारी संतस ई ,संजीवनभाष्य , पद्मपुराण , संजीवन
३०.विश्र्वनाथ प्रसाद मिश्र।           वांग्मय विमर्श, नीला कंठ उजले बोल, बिहारी की वाग्विभूति
३१.राम कुमार वर्मा।               वीर हमीद, चित्तौड़ की चिता,रुपराशि , एकलव्य, अंजलि
४०. श्यामसुंदर दास।       हिन्दी कोविंद रत्नमाला, साहित्यलोचना,मेरी आत्मकहानी,कबीर ग्रंथावली
४१. राम रतन भटनागर।         निबंध प्रबोध, प्रेमचन्द्र, तुलसी दास,प्रबंध पूर्णिमा
४२. नागार्जुन।                बलचनमा
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अमीर खुसरो।                   पहेली                   खड़ी बोली

































            














Ñभाषाओं को लिखने कै लिए अनेक लिपियांँ प्रचलित है।
देवनागरी बाईं से दाईं ओर लिखी जाती है।
उर्दू की लिपि फारसी  है जो दाईं से बाईं ओर को लिखी जाती है।
भाषा                                              लिपि
हिन्दी।                                        १.देवनागरी
२. संस्कृत।                                      २.देवनागरी
३.मैथिली                                          ३.देवनागरी
४. मराठी                                           ४.देवनागरी
५.नेपाली                                             ५. देवनागरी

६.अंग्रेजी                                              ६.रोमन
७.पंजाबी                                                गुरुमुखी
भाषा परिवार _
भाषाओं का समूह , जिसका जन्म किसी एक मूल भाषा से हुआ है, भाषा परिवार कहलाता हैं।
विश्वभर की लगभग ६५०० भाषाओं को १२ मुख्य भाषा परिवारों में विभाजित किया गया है।
१.भारोपीय (भारत- योरोपीय)
२.द्रविड़
३.चीनी
४.,सेमेटिक
५.हेमेटिक
६.आग्नेय
७.यूराल -अल्टाइक
८.बाँटू
९.अमेरिकी
१०.काकेशस
११.सूडानी
१२.वुशमैन
हिन्दी,गुजराती,कश्मीरी,मैथिली,बांग्ला,उड़िया,असमिया,
उर्दू,मराठी,पंजाबी आर्य परिवार की भाषा मानी जाती है।
इन सभी का मूल स्रोत संस्कृत है। अंग्रेजी,जर्मन, फ्रांसीसी,रुसी, फारसी,ग्रीक, संस्कृत सभी भारत-यूरोपीय भाषा परिवार माना जाता है।
भारत में भारत- यूऱोपीय परिवार की भारतीय आर्य- भाषाएं और द्रविऊ कुल की भाषा जिसमें मुख्य भाषा तमिल, तेलगु, मलयालम,कन्नड़ बोली जाती है। द्र्विड़ कुल की भाषा में भी संस्कृत के शब्द प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं
भारतीय - यूरोपीय  भाषा परिवार विश्व का एक अत्यंत विशाल भाषा परिवार है। इसे भारतीय आर्य भाषा शाखा के नाम से भी जाना जाता है। वैदिक संस्कृत सबसे प्राचीनतम रुप है।इसी से हिन्दी भाषा और अन्य भारतीय भाषाओं का विकास हुआ। आधुनिक युग की भाषाओं का
विकास हुआ। आधुनिक युग की भारतीय भाषाओं तक आने में इसे निम्न चार चरणों से होकर गुजरना पड़ा

१.वैदिक संस्कृत (१५००ई .पू.से८००ई .पू .तक) इसमें चार वेदों की रचना हुई।
२.लौकिक संस्कृत (८०० ई.पू. से ५०० ई.पू. तक) इस अवधि में रामायण, महाभारत आदि महाकाव्य लिखे गए।
३.पालि और प्राकृत ( ५०० ई.पू. से ५०० ई.तक )इसमें बौद्ध साहित्य की रचना हुई। यह लौकिक , संस्कृत का परिवर्तित रूप है।
४.अपभ्रंश (५००  ई.से १००० ई.तक) प्राकृत का परिवर्तित रूप  शैरसैनी,मगधी, महाराष्ट्री, आदि रुऐ प्रचलित है।
द्रविड़ परिवार की तमिल, तेलुगु , मलयालम तथा कन्नड़ को छोड़कर भारत के ,सभी भाषाओं का विकास अपभ्रंश से हुआ है।
हिन्दी का विकास अपभ्रंश से हुआ है जो ५०० ई. से १००० ई. के बीच का माना जाता है।
आर्य - परिवार की आधुनिक भारतीय भाषाओं में हिन्दी, मैथिली, उर्दू, कश्मीरी,सिंधी, गुजराती, मराठी, बांग्ला, उड़िया और असमिया प्रमुख हैं।
संस्कृत से विकसित होने के कारण इन भाषाओं में संस्कृत के शब्द प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। व्याकरण के भी नियम लगभग समान होते हैं।
मुगलकाल में दो प्रमुख भाषाएं अरबी और फारसी ने भाषा पर प्रभाव डाला। उर्दू  ज्यादा प्रभाव डाला। इसी तरह अंग्रेजों के द्वारा २०० वर्ष तक शासन करने की वजह से अंग्रेजी भाषा के बहुत से शब्द हिन्दी में भी प्रयोग किए जाते हैं।
आज जिस रुप में हिन्दी बोली और समझी जाती है वह खड़ी बोली का साहित्यिक रुप  है। इसका विकास मुख्यत १९वीं सदी में हुआ है। खड़ी बोली का प्राचीन १०वीं सदी में मिलता है ।१४वीं  सदी में अमीर खुसरो ने खड़ी बोली में पहली रचना की।
दक्कनी  हिन्दी - उत्तर भारत की खड़ी बोली को मुसलमानों के द्वारा दक्षिण भारत में ले जाया गया। दक्कनी उर्दू कहा जाता है।
मध्यकाल में ब्रजभाषा और अवधी काव्य की भाषाएं थी।, सूरदास जी ने ब्रजभाषा को, विद्यापति जी ने मैथिली को , तुलसी दास जी ने अवधि को को शिखर तक पहुंचाया। राजदरबार में फारसी राजकाज की भाषा थी। खड़ी बोली मध्यकाल तक मुख्यत बोल - चाल की भाषा थी, उत्तर भारत में।
१९वीं और २०वीं सदी में ग्यान - विज्ञान का प्रसार हुआ और इसे जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए खड़ी बोली सहज रूप से सर्वग्राह्य के रुप में सामने आया। पत्र, पत्रिकाओं का उदय ,जन सामान्य तक संदेश पहुंचाने का आग्रह, शिक्षा का प्रसार, राजनीतिक चेतना का उदय आदि
कारणों से खड़ी बोली उत्तर भारत ही नहीं बल्कि समस्त देश की जनसंपर्क की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।
इसी युग में  हिन्दी गद्य के रचयिता जैसे - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचन्द्र शुक्ल, जय शंकर प्रसाद,, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', मैथिलीशरण गुप्त आदि अनेक विद्वानों का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा।
राजनीति जगत के नेताओं ने भी जन सामान्य को संबोधित करने के लिए इसी हिन्दी का प्रयोग किया।
भारतीय ,
१. भारतीय संविधान ने हिन्दी को राजभाषा के रूप में १४सितम्बर १९४९ को स्वीकार किया।
२.अनुच्छेद ३४३ के अनुसार राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी
३.हिन्दी अन्तर्राष्ट्रीय स्वरुप भी स्थापित कर चुकी है।
४.प्रयोजनमूलक हिन्दी, कार्यालयों, बैंकों, कंप्यूटर, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, प्रबंधन संस्थानों, जनसंचार में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी है।
५.बोली - छोटे क्षेत्र में स्थानीय व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली अल्पविकसित रुप बोली कहलाती है।
६.उपभाषा - विस्तृत क्षेत्र अथवा प्रदेश में बोल-चाल की भाषा होती है, इसमें साहित्यिक रचना भी की जाती है।
इसमें एक से अधिक बोलियां हो सकती है।
७.भाषा - एक विस्तृत क्षेत्र में बोलने, लिखने, साहित्य रचना,संचार माध्यमों में प्रयुक्त होता है।
८.हिन्दी भाषा और साहित्य को समृद्ध करने में  अवधी, छत्तीसगढ़ी, मैथिली, भोजपुरी, हरियाणवी, खड़ी बोली, ब्रजभाषा, बुन्देली, राजस्थानी, गढ़वाली,कुमाँउनी,दकि्खनी हिन्दी से हिन्दी भाषा और समृद्धिशाली हुआ। इन बोलियों,उपभाषाओं में निम्नलिखित रचनाओं का खास योगदान है। अवधि में प्रथम काव्य परंपरा विकसित  हुई। हिन्दी के प्रसिद्ध कवि,लेखक, लेखिका एवं उनकी प्रसिद्ध कृति , रचनाएं
नाम                                       रचना।                      
१.विद्यापति।                        पदावलि, कीर्तिलता,                                          मणिमंजरा, नटिका, गंगावाक्यावली
२.तुलसीदास।                           रामचरितमानस, विनय-पत्रिका, कवितावली, गीतावली
३.मलिक मोहम्मद जायसी               पद्मावत, चंपावत,चित्रावत, बारहमासासब
४.सूरदास।                                      सूरसागर,सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल - दमयंती,ब्याहलो
५. नंददास।                         रसमंजरी,अनेकार्थमंजरी, भागवत-दशम स्कंध, सुदामा चरित,भँवर गीत
६.रसखान।                                प्रेमवाटिका, सुजान रसखान
७.रहीम                                     श्रृंगार- सतसयी,मदनाष्टक, रासपंचाध्ययी
८.केशवदास।                              रसिक प्रिया
९.बिहारी।                                   बिहारी ,सतसै
१०.मतिराम।                                फूल मंजरी, ललित- ललाम,रसराज
११.भूषण।                                    शिवराज भूषण,छत्रशालदशक
१२.पद्माकर।                                 हिम्मतबहादुर, विरुदावली, गंगालहरी, ईश्वर पचीसी, अश्वमेध
१३. अमीर खुसरो।                              तुगलकनामा,आशिका
१४. जयशंकर प्रसाद।                        कामायनी,आँसू,लहर, झरना, चित्राधार ,चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी,नागयज्ञ
१५. मीराबाई।              पायो जी म्हें तो राम रत्न धन पायो
१६. सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'।                परिमल, अर्चना,सांध्य काकली , गीतिका, कुकुरमुत्ता, अनामिका
१७. महादेवी वर्मा।                निहार,नीरजा, रश्मि, दीपशिखा,अग्निरेखा,साप्तपर्णा।
१८. रामधारी सिंह दिनकर।             उर्वशी, रश्मिरथी, हुंकार,नीम के पत्ते
१९. सुभद्रा कुमारी चौहान।             झांसी की रानी, अनोखा दान, ठुकरा दो या प्यार करो, अराधना
२०. माखनलाल चतुर्वेदी।              अमीर इरादे, गरीब इरादे,हिम किरीटिनी,वेणु
२१. मैथिली शरण गुप्त।             भारत -भारती, पंचवटी, जयद्रथवध, यशोधरा
२२. सुमित्रा नंदन पंत।                पल्लव, ग्राम्या, चिदम्बरा, काला और बुढ़ा चाँद,तारापथ
२३. राजा लक्ष्मण सिंह                      प्रजा हितैषी, शकुंतला
२४. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।                   भारत दुर्दशा, सत्य हरिश्चन्द्र
२५. जगन्नाथ दास।                   उद्धव शतक,गंगवतरण,वीराष्टक
२६. श्रीधर पाठक।                वनाश्टक , काश्मीर सुषमा
२७. राम चंद्र शुक्ल।              भरमार गीत सारा, जायसी ग्रंथावली, गोस्वामी तुलसीदास
२८. आचार्य। हजारी प्रसाद द्विवेदी        बाणभट्ट की आत्मकथा, पुनर्नवा
२९. पंद्म सिंह शर्मा।             बिहारी संतस ई ,संजीवनभाष्य , पद्मपुराण , संजीवन
३०.विश्र्वनाथ प्रसाद मिश्र।           वांग्मय विमर्श, नीला कंठ उजले बोल, बिहारी की वाग्विभूति
३१.राम कुमार वर्मा।               वीर हमीद, चित्तौड़ की चिता,रुपराशि , एकलव्य, अंजलि
४०. श्यामसुंदर दास।       हिन्वि




                                         

           

                   
































           















            




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