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मनोविज्ञान क्या है?
दो ग्रीक (Greek ) शब्दों के मिलने से बना है। Psyche (आत्मा) तथा logos (अध्ययन, विवेचन )।
 प्राचीन दार्शनिक अरस्तू (Aristotle ) तथा  प्लूटो (Pluto) ने इसके शाब्दिक अर्थ को ध्यान में रखते हुए, इसे आत्मा के बारे में अध्ययन करने वाला विषय माना था। जो आज के परिप्रेक्ष्य में बदल चुका है।
17वीं,18वीं शताब्दी में Psyche शब्द का अर्थ मन बताया गया और कहा यह गया कि मनोविज्ञान मन का अध्ययन है।  इन दार्शनिकों में नाम आता है वे हैं -कांट, ह्यूम,लिवनिज,हाब्स आदि। यह विचार 1870 ईसबी तक मान्य रहा और मनोविज्ञान दर्शनशास्र की एक शाखा थी।
     इन दार्शनिकों के परिभाषा दोष यह पाया  गया कि आत्मा और मन दोनों अमूर्त है, इसका अध्ययन वैज्ञानिक रुप से संभव नहीं था।
           1879 में विलियम वूंड ( William Wundt) ने जर्मनी के लिपजिंग विश्वविद्यालय जो अभी कार्ल मार्क्स विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है। सबसे पहले उन्होंने इसे प्रयोगात्मक रुप दिया। मनोविज्ञान का विषय - वस्तु मन, आत्मा से  हटाकर मानसिक क्रिया (mental activities ) या चेतन अनुभूति  
( conscious experience ) हो गई। इस तरह के विचार को मानने वाले को संरचनावादी
 ( structuralist) कहा गया।
            इसमें विलियम वुण्ट और टिचेनर प्रमुख थे। चेतन अनुभूति ( conscious experience ) , तात्कालिक अनुभूति ( immediate experience ) का अर्थ है संवेदना ( sensation), कल्पना
 ( imagination), प्रतिमा (image),  भाव ( feeling) आदि मानसिक क्रियाओं से है।
        सभी अनुभव चेतन नहीं होता , अचेतन भी हो सकता है। मन की सभी अवस्थाओं  का अध्ययन होता कि नहीं ,यह स्पष्ट नहीं है। संरचनावादियो  की परिभाषा में त्रुटि पाए जाने पर मनोविज्ञान की दूसरी परिभाषा व्यवहारवादियों द्वारा दी गई जिसमें प्रमुख नाम J.B Watson का है। व्यवहारवादियों ने  मनोविज्ञान को व्यवहार को एक वस्तुपरक विज्ञान माना।  ( positive science of behaviour). चेतन अनुभूति की जगह व्यवहार को रखा गया , क्योंकि व्यवहार को देखा जा सकता है।
      सोचना , दौड़ना, हँसना, रोना आदि का अवलोकन किया जा सकता है। इसमें व्यवहार के तीनों पक्ष क्या (what),  क्यों (why) तथा कैसे (how) का अध्ययन किया जाता है। परन्तु व्यवहार का अपने -आप में कोई अर्थ नहीं होता है। हम अपने अनुभूति के आधार पर व्याख्या करते हैं।
    आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने जो परिभाषा दिया है उसमें दोनों  तरह के परिभाषा जो संरचनावादियों ने दिया और जो व्यवहारवादियों ने दिया का संगम देखने को मिलता है।
           मार्गन (Morgan ), किंग ( King), विस्ज ( Weisz) और स्कापलर (Scoplar ) ने भी स्पष्ट किया है कि मनोविज्ञान मानव व्यवहार तथा पशु व्यवहार का अध्ययन है जिसमें मानसिक घटनाओं को अलग नहीं किया जा सकता है।
             शिक्षा (Education)
शिक्षा का उपयोग प्राचीन काल से होता आया है। ज्ञानी - अज्ञानी के बीच ज्ञान का लेन-देन की सुव्यवस्थित प्रक्रिया को शिक्षा कहा जाता था। गुरु को अपने शिष्यों को कुछ आवश्यक तथ्यों को कण्ठस्थ कराना पड़ता था।
इस तरह की शिक्षा देने में शिष्य को मात्र सूचना देना था। उनकी आयु, रुचि एवं योग्यता आदि पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया जाता था।
   इस तरह की शिक्षा बाल केन्द्रित (child centered ) न होकर ज्ञान केन्द्रित (knowledge centered) थी।
शिष्य चाहे बालक हो या व्यस्क उसे एक ही तरह की शिक्षा दी जाती थी। इससे शिष्य का सर्वांगीण विकास नहीं होता था।
          आधुनिक काल में शिक्षा का यह अर्थ पूर्णतः समाप्त हो गया है। उपदेश या सूचना देना नहीं होता शिक्षा का अर्थ  , अपितु व्यक्तियों के सर्वांगीण विकास (all round development)  के लिए निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति में निहित क्षमताओं का सही विकास होता है जिससे व्यक्ति समाजोपयोगी बनता है।
क्रो एंड क्रो ( Crow and Crow ) 1954 के अनुसार शिक्षा व्यक्तिकरण एवं समाजीकरण की वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति की व्यक्तिगत  उन्नति तथा समाजोपयोगिता को बढ़ावा देती है। स्कीनर (Skeiner )1962 , रिली तथा लेविस ( Reilly and Lavis ) द्वारा भी इन बातों का समर्थन किया गया है शिक्षा की परिभाषा में।
          इन विशेषज्ञों ने शिक्षा को सामाजिक प्रक्रिया ( social process) माना जिसके द्वारा  व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है।
   सर्वांगीण विकास से तात्पर्य  व्यक्ति के मानसिक(mental), शारीरिक (physical),नैतिक (moral) विकास (development ) से है। शारीरिक रूप से विकसित होकर  वातावरण के साथ समुचित समायोजन कर सके। शिक्षा मानसिक विकास करके मानसिक रूप से स्वस्थ तथा नैतिक विकास करके नैतिक रूप से स्वस्थ बनाकर समाजीकरण के शीर्ष पर पहुँचाती है।
   आधुनिक शिक्षा व्यक्ति के चहुँमुखी विकास ( all round development)  तथा उसमें निहित क्षमताओं 
को जगाने की एक प्रक्रिया है।
       शिक्षा का उद्देश्य ( aim of Education )
शिक्षा का उद्देश्य बालकों के व्यक्तित्व में एक ऐसा सर्वांगीण विकास करने से होता है जिससे वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ठीक ढंग से समायोजन करने में सफल हो सके।
   शिक्षा मनोविज्ञान अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षा को अपने मूल उद्देश्यों को प्राप्ति में मदद करता है।
       शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक - छात्र के संबंधों पर अधिक बल डालता है। शिक्षा में शिष्य के सर्वांगीण विकास के लिए माहौल तैयार किया जाता है। शिक्षा का संबंध मूल्यों( values) आदर्श ( ideology) मानकों से है। शिक्षा मनोविज्ञान इन तीनों की प्राप्ति में सहायता करता है। शिक्षा साध्य (end) तथा शिक्षा मनोविज्ञान साधन ( means ) है। शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा से संबंधित , समस्याओं का विवेचन, विश्लेषण एवं वैज्ञानिक समाधान प्रस्तुत करता है।
         स्किनर (Skinner) (1962 ) - शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की वह शाखा है जो सीखने और सीखाने की प्रक्रिया का अध्ययन करती है।  
          जेम्स ड्रीवर (James Drever) (1964) - शिक्षा मनोविज्ञान , मनोविज्ञान की वह शाखा है जो शिक्षा में मनोवैज्ञानिक नियमों एवं परिणामों के उपयोग से तथा साथ ही साथ शिक्षा की समस्याओं के मनोवैज्ञानिक अध्ययन से संबंधित होता है।
           सैन्ट्रोक (Santrock) (2006)  - शिक्षा मनोविज्ञान , मनोविज्ञान की ऐसी शाखा है जो शैक्षिक परिस्थितियों में शिक्षण (teaching) एवं में अधिगम  (learning)के बोध में विभिन्नता दिखलाता है।
            शिक्षा मनोविज्ञान का स्वरुप ( nature of Educational psychology). 
शिक्षा मनोविज्ञान, मनोवैज्ञानिक नियमों, सिद्धांतो का उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में करके बालकों एवं व्यस्कों में सर्वांगीण विकास में मदद करता है।
1.शिक्षा मनोविज्ञान बालकों के मानसिक , शारीरिक एवं नैतिक क्षमताओं को निर्धारित करके तदनुसार उचित शिक्षा की व्यवस्था करने में सहायता पहुँचाता है।
2.बालकों को विभिन्न क्षमताओं का सिर्फ मापन ही नहीं,इसका समुचित विकास एवं अनुकूल शिक्षा के लिए परामर्श देता है।।
         शिक्षा की समस्याओं का समाधान एवं बालकों के लिए उचित शिक्षा का माहौल तैयार करने की जिम्मेवारी शिक्षा मनोविज्ञान पर है।
           शिक्षा मनोविज्ञान का इतिहास ( History of Educational psychology).
शिक्षा मनोविज्ञान का इतिहास उतना ही पुराना है जितना शिक्षा की प्रक्रिया। समय - समय पर बड़े - बड़े मनोवैज्ञानिकों द्वारा योगदान किया गया है।
                 ग्रीक दार्शनिकों द्वारा किए गए योगदानों से शिक्षा मनोविज्ञान का इतिहास प्रारंभ होता माना जाता है। डेमोकरटिस (Democritus ) पहले ऐसे दार्शनिक थे जिन्होंने बच्चों के व्यक्तित्व विकास में घरेलू शिक्षा के महत्व पर बल डालता था।
                    ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में प्लेटो  (Plato427- 347B.C) तथा अरस्तू ( Aristotle 384 - 322 B.C)  ने शिक्षा की एक विशेष पद्धति का विकास किया तथा उसमें मनोवैज्ञानिक नियमों तथा सिद्धांतों के महत्व की भूमिका पर बल डाला।
1.विभिन्न लोगों के लिए अलग-अलग शिक्षा।
2.चरित्र शिक्षा, शिक्षण की विभिन्न विधियाँ।
                         अरस्तू ने मस्तिष्क के संकाय सिद्धांत ( faculty theory) के द्वारा शिक्षा में मनोवैज्ञानिक नियमों एवं सिद्धांतों की उपयोगिता पर बल डाला था।
उनके द्वारा शिक्षा के प्रतिपादित मनोवैज्ञानिक आधार का प्रभाव पूरे संसार पर काफी व्यापक रूप से पड़ा।
बाद में अरस्तू के शिक्षा सिद्धांतों को परिभाषित कर उन्नत बनाया गया।
                            डेस्कार्ट (Descrates 1596- 1650)  रूसो (Rousseau) ने भी अरस्तू की विचारधारा का समर्थन किया है। रूसो ने शिक्षा को मानव विकास के नियमों पर आधारित करने की सिफारिश की। उन्होंने अपनी लोकप्रिय पुस्तक ईमाइल (Emile ) में शिक्षा की विभिन्न पद्धतियों में मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों एवं नियमों की भूमिका पर प्रकाश डाला।
                     शिक्षा को मानव विकास के नियमों पर आधारित करने की सिफारिश की। उन्होंने अपनी पुस्तक ईमाइल (Emile ) में शिक्षा की विभिन्न पद्धतियों में मनोवैज्ञानिक नियमों एवं सिद्धांतों की भूमिका का उल्लेख किया।
                 जान लाॅक (John Locke ) 1632 - 1704) जो एक प्रमुख अनुभववादी थे , संकाय सिद्धांत की आलोचना की और बताया मस्तिष्क के विभिन्न संकाय सचमुच वास्तविक नहीं है। इस आलोचना के बावजूद संकाय सिद्धांत का प्रभाव शिक्षा पर काफी पड़ा।
                इस प्रभाव के फलस्वरूप शिक्षा के एक नये सिद्धांत का जन्म हुआ जिसे शिक्षा का औपचारिक अनुशासन सिद्धांत( Theory of  formal  discipline of Education की संज्ञा दी गई।
                  इस सिद्धांत के अनुसार कुछ खास - खास कठिन विषयों जैसे गणित , लैटिन तथा ग्रीक  आदि के सीखने से व्यक्ति का मस्तिष्क काफी प्रशिक्षित हो जाता है। इस प्रशिक्षित मस्तिष्क का धनात्मक हस्तांतरण (positive transfer ) शिक्षा के हर क्षेत्र में होता है।
                       18बीं शताब्दी के प्रारंभिक दशक में दो दार्शनिक शिक्षकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। जोहान हरबर्ट (John Herbert) 1776 - 1841 ने मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित शिक्षा में अभिरुचि (interest ) तथा आत्मबोध (aperception ) पर अधिक बल डालने की सिफारिश की। संकाय मनोविज्ञान ( faculty psychology ) को अस्वीकृत कर दिया।
                         फ्रोबेल ने बच्चों को पढ़ाने की एक नई पद्धति का विकास किया जिसे किंडरगार्टन विधि ( Kindergarten method ) कहा जाता है। इस पद्धति में बच्चों को शिक्षा देने में प्रारंभिक अनुभूतियों (early experiences) के महत्व पर अधिक प्रकाश डाला जाता है।
19वीं शताब्दी के प्रारंभ में एक अन्य दार्शनिक शिक्षक पेस्टालोजी (Pestalozzi 1746- 1827) ने शिक्षा के क्षेत्र में काफी योगदान दिया। उन्होंने ने शिक्षा को मनोवैज्ञानिक नियमों पर आधारित करने पर बल डाला और प्रशिक्षण विधि में क्राँतिकारी परिवर्तन लाए।
उन्होंने  शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तियों की क्षमता को जगाने तथा बेहतरीन क्षमताओं को विकसित करना है बताया।
मानव विकास के नियमों तथा सीखने की विधि का भी प्रतिपादन किया।
                          अभी तक शिक्षा मनोविज्ञान मूलतः दार्शनिक शिक्षकों  ( philosopher educators) के योगदान पर आधारित था। सही अर्थ में शिक्षा मनोविज्ञान का इतिहास फ्रांसिस गाल्टन  ( Francis Halton ) ( 1823 -1911) द्वारा किए गए योगदान से प्रारंभ होता है। गाल्टन ने वैयक्तिक  विभिन्नता ( individual difference ) के अध्ययन पर अधिक बल डाला। गाल्टन पहले ऐसे मनोवैज्ञानिक थे  जिन्होंने व्यक्ति के मानसिक क्षमता को मापने के लिए मानसिक परीक्षण (psychological test का निर्माण किया। गाल्टन का यह भी विचार था कि व्यक्तियों के बुद्धि का माप उनकी संवेदी क्षमताओं ( sensory capacities) के आधार पर किया जाए।
                                   इसके बाद G Stanlay Hall (1844- 1924) ने प्रश्नावली के सहारे बच्चों के शैक्षिक व्यवहारों के अध्ययन  पर जोर डाला।
                                    विलियम जेम्स ( William James) ने 1899 में "टाक्स टू टीचर्स " (Talk to Teachers) में शिक्षा में  शिक्षा मनोविज्ञान की उपयोगिता का वर्णन किया। उन्होंने शिक्षा को उन्नत बनाने के लिए कक्षा में शिक्षण एवं अधिगम  ( teaching and learning) को ध्यानपूर्वक प्रेक्षण करने पर बल डाला। उनके अनुसार  बच्चों के सामने सीखने के लिए रखे गए पाठ का स्तर उसके ज्ञान के स्तर से थोड़ा ऊँचा होना चाहिए ताकि बच्चे अपने मन - मस्तिष्क पर अधिक बल देकर उसका समाधान करना सीखे।
                 उसी समय में एक दूसरे महत्वपूर्ण शिक्षा मनोविज्ञानी  John Dewey (1859 - 1953)  जिन्होंने मनोविज्ञान के व्यवहारिक  उपयोग को प्रभावी बनाने पर जोर डाला।1894 में शिकागो में एक वृहत शिक्षा मनोविज्ञान की प्रयोगशाला की स्थापना की।
                    उनके तीन विचारों का प्रभाव शिक्षा मनोविज्ञान पर काफी लाभदायक हुआ।
1.उन्होंने बच्चों को एक सक्रिय शिक्षार्थी (active learner ) माना न कि निष्क्रिय शिक्षार्थी (passive learner )उनका मानना था कि बच्चे किसी कार्य को सक्रिय ढंग से करके ही उत्तम ढंग से सीखते हैं।
2.डिवी का मत था कि बच्चों को एक बिचारशील समस्या साधक  (reflective problem solver ) बनने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उत्तम शिक्षा वही है जो बच्चों पर संपूर्ण ढंग से बल डालता हो और वातावरण के साथ बच्चों के समायोजन के महत्व को भी समझता हो, अर्थात शिक्षकों को सिर्फ बच्चों को शैक्षिक विषय का ज्ञान देना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि उनमें यह भाव भी विकसित करवाना चाहिए कि वह उस विषय पर कैसे सोचता है और स्कूल के बाहर के वातावरण से किस तरह समायोजन करता है।
३. डिवी का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण विचार था कि विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूह तथा सभी धर्मों के लोगों के लिए समान शिक्षा होनी चाहिए। इससे पहले अच्छी शिक्षा केवल धनी परिवार के बच्चों के लिए था।
                   बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में अल्फ्रेड बिने (Alfred Binet) ने एक महत्वपूर्ण योगदान बालकों की बुद्धि मापने के लिए सबसे पहला बुद्धि परीक्षण (intelligence test ) का निर्माण करके दिया जो 1905 में बिने -साइमन मापनी( Binet Simon scale) के नाम से प्रकाशित हुआ।
                        जैम्स मैककीन कैटेल (J.M.Cattel 1860-1944) ने शिक्षा मनोविज्ञान के स्वरूप को प्रयोगात्मक बनाया , वैयक्तिक विभिन्नता(Individual difference) तथा मानसिक परीक्षण (mental test)के क्षेत्र में प्रयोग करके।
                           कैटल के शिष्य ई.एल.थार्नडाइक E.L . Thorndike (1874-1949) ने अपने गुरु के कार्यों को आगे बढ़ाया और साथ ही अनेकों योगदान दिया शिक्षा के क्षेत्र में। इन सबसे हटकर भी थार्नडाइक ने सीखने का एक सिद्धांत विकसित किया और सीखने के नियम को भी प्रतिपादित किया। इन नियमों में से जो शिक्षा की समस्याओं को सुलझाने में काफी मददगार साबित हुआ, वह है प्रभाव-नियम ( Law of Effect)
1903 में थार्नडाइक ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'शिक्षा मनोविज्ञान' (Educational psychology) नामक पुस्तक में एक नए सिद्धांत का प्रतिपादन किया वह है हस्तांतरण का नया सिद्धांत 'समरुप तत्वों का सिद्धांत' (Theory of identical elements). यह सिद्धांत उन्होंने औपचारिक अनुशासन के सिद्धांत (Theory of formal discipline) को अस्वीकृत करने के बाद दिया था। इस सिद्धांत में उन्होंने कहा था कि समरुप तत्वों की संख्या जितनी अधिक होगी धनात्मक हस्तांतरण (positive transfer) एक परिस्थिति से दूसरे में उतना अधिक होगा।
             1922 में उन्होंने CAVD TEST नया बुद्धि परीक्षण बनाया जिसमें चार उपपरीक्षण था। 1.पूर्ति (completion) 2.अंकगणितीय चिंतन ( Arithmetic reasoning) 3.शब्दावली (vocabulary) 4.दिशा (Direction )
                बुद्धि में उन्होंने सामान्य मानसिक क्षमता ( general mental ability) जैसी चीज को इंकार किया और इसी कारण से साइमन बिने द्वारा प्रतिपादित बुद्धि परीक्षण का विरोध किया और इसके जगह एक नया बुद्धि परीक्षण बनाया जो CAVD TEST है।
उन्होंने अंकगणित की शिक्षा देने के लिए सात प्रमुख नियमों का प्रतिपादन किया जो एक महत्वपूर्ण योगदान है।
                         बी.एफ.स्कीनर (B.F Skinner 1938) 1950 के दशक में कार्यक्रमित अधिगम ( programmed learning) के संप्रत्य को विकसित किया जिसमें छात्रों के प्रत्येक उपलक्ष्य पर पहुंँचने पर पुनर्बलन (reinforcement ) देते हुए उन्हें अंतिम लक्ष्य पर पहुँचने के लिए प्रेरित किया जाता।  स्कीनर का व्यवहार परक उपागम (behavioural approach) में बच्चों के अधिगम के लिए उत्तम अवस्थाओं (best conditions) की पहचान की गई। उन्होंने जान डिवी और विलियम जेम्स द्वारा प्रस्तावित मानसिक प्रक्रियाओं का प्रेक्षण (observation ) को नहीं किया जा सकता माना और बताया कि यह मनोविज्ञान का उचित अध्ययन विषय नहीं हो सकता। उन्होंने एक शिक्षण मशीन का निर्माण किया जो शिक्षक का कार्य करता था तथा सही उत्तर देने पर छात्रों को पुनर्बलित भी करता था। परन्तु स्कीनर के इस व्यवहारपरक उपागम से वर्ग के शिक्षकों की बहुत सी आवश्कताओं एवं लक्ष्यों की पूर्ति नहीं हो सकती थी।
                  1950 के आरंभिक वर्षों में संज्ञानात्मक कौशल (cognitive skills) का एक वर्गीकरण तैयार किया जिसमें स्मरण (remembering), बोध (comprehending) संश्लेषण (synthesizing) तथा मूल्यांकन (evaluation) को सम्मिलित किया और उन्होंने इस बात पर बल डाला कि शिक्षकों को इन कौशलों को छात्र में विकसित करने और उसके उपयोग पर बल डालना चाहिए। उनके इस विचार से अब संज्ञानात्मक परिदर्श (cognitive perspective )का प्रभाव बढ़ने लगा। उन्होंने इस बात पर जोर डाला कि अधिगम निर्देशन (learning instruction) का व्यवहार परक विश्लेषण  ( behavioural analysis) द्वारा वर्ग में अधिगम निर्देश की उपयुक्त व्याख्या नहीं हो पाता।
   बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में बहुत सारे शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने विलियम जेम्स तथा जान डिवी द्वारा प्रारंभ में संज्ञानात्मक पहलू पर दिए गए बल को फिर से पुनर्जीवित किया।
           आधुनिक शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने संज्ञानात्मक तथा व्यवहार परक दोनों ही पहलू पर जोर डाला है। इसके साथ-साथ  छात्रों के सामाजिक -सांवेगिक पहलुओं (socio -emotional) पहलुओं पर भी बल डाला है। विद्यालय को एक सामाजिक संदर्भ  के रुप और संस्कृति (culture) की भूमिका को भी अपनाया गया है।
           आधुनिक शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने न सिर्फ  सीखने (learning) तथा सिखाने (teaching) के ही क्षेत्र में कार्य नहीं कर रहे हैं, बल्कि अन्य संबंधित प्रमुख क्षेत्र जैसे मानसिक स्वास्थ्य (mental health) , सामाजिक कुसमायोजन (social maladjustment) शैक्षिक एवं व्यवसायिक निर्देशन (educational and vocational  guidance तथा मापन एवं मूल्यांकन (measurement and evaluation) आदि नए-नए क्षेत्रों में भी कार्यरत हैं।
                 शिक्षा मनोविज्ञान के उद्देश्य ( Aims or objectives of Educational psychology)
शिक्षा मनोविज्ञान का उद्देश्य शिक्षार्थियों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना तथा मानव स्वभाव को समझने में शिक्षकों का मदद करता है। शिक्षकों को शिक्षा- संबंधी  आवश्यक मनोवैज्ञानिक तथ्यों को अवगत कराकर कार्यों में सहायता प्रदान करना है जिससे वे शिक्षार्थियों को विकास के पथ पर निर्देशित कर सके।
                शिक्षा मनोविज्ञान के विशिष्ट उद्देश्य (special purpose).
1.शिक्षकों की सहायता करना।( To help the teachers)
               A.   शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षकों में शैक्षिक समस्याओं के प्रति उचित मनोवृत्ति उत्पन्न करने में मदद करता है। इससे शिक्षक को परिस्थिति के अनुसार शिक्षण विधि अपनाने तथा बालकों के लिए लाभकारी 
विधि अपनाने में मदद मिलता है।
B. शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षकों को शिक्षार्थियों के व्यवहार में समुचित परिवर्तन लाने के लिए वातावरण तैयार करने में मदद करता है।
C.एक सफल शिक्षक सहानुभूतिपूर्वक तथा निष्पक्ष भाव से शिक्षार्थियों के व्यवहारों का विश्लेषण करते हैं। शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षार्थियों के व्यवहार को सहानुभूति पूर्वक समझने में मदद करता है।
D.शिक्षा मनोविज्ञान के द्वारा शिक्षक शिक्षार्थियों की कमजोरियों तथा असफलताओं को समझकर उनके उपचार करने की सिफारिश करते हैं।
E. शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान के द्वारा ही शिक्षक बालकों की योग्यता के अनुरूप विषय -वस्तु को ठीक ढंग से चयन कर संगठित कर पाते हैं।
F.शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षकों को अपनी भूमिका निभाने में भी मदद करता है, शिक्षा संबंधित सभी समस्याओं का निदान करने में काफी मदद मिलता है।
G. बालकों के बीच वैयक्तिक विभिन्नता (individual differences )  को देखते हुए बालकों के शिक्षण-अधिगम तथा निर्देशन कार्यक्रम में शिक्षा मनोविज्ञान काफी मदद करता है।
H .शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षकों को अपने-आप को भी समझने में मदद करता है।            
2.उचित शैक्षिक निर्देशन देना ( proper educational guidance.
प्रत्येक बालक की अभिरुचि, (interest), अभिक्षमता (aptitude), मानसिक क्षमता (mental ability) अलग-अलग होती है। सभी बालक एक ही तरह के विषय की शिक्षा देने के लायक नहीं होते । शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षार्थियों के इन विभिन्नता को देखते हुए सही दिशा में निर्देशन देना सिखाता है कि किस विषयों की शिक्षा लेनी चाहिए और क्यों, जैसे विज्ञान,कला, वाणिज्य, संगीत इत्यादि।
3.उचित पाठ्यक्रम बनाना ( To make proper curriculum)
शिक्षार्थियों के लिए उचित पाठ्यक्रम बनाना उनके वैयक्तिक विभिन्नता (individual differences)



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